दो जगह प्रेम
- Jashu Kumar
- May 20, 2020
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मैं दो जगह प्रेम में हूँ। शहर में तुमसे और गाँव में गाँव से। गाँव जाने के मौके महीनों पर आते हैं। और तुम्हें देखने के हर रोज। बेशक दोनों से मेरा मन कभी नहीं भरता। कभी-कभी सोचता हूँ, बिना तुम्हारे ये शहर कैसा होगा? क्या मैं यहाँ रह पाऊँगा, बिना तुम्हारे? जवाब "नहीं" ही है। मैं तुमसे दूर होना नहीं चाहता और गाँव को खोना नहीं चाहता। फिलहाल दुनिया ब्रेकअप-मूवऑन के दौर में हैं। एक दिन हमारा भी हो जायेगा क्यूँकि तुम्हारी संगति भी इसी दुनिया से है। तुम्हारे बिना, ये शहर मुझे मारने को दौड़ेगा। तुम्हारे बिना मैं कहीं भी रह सकता हूँ तो वो गाँव ही है। शहर में बोये कुछ साथ वाले ख़्वाबों को अकेले मैं गाँव में ही जी सकता हूँ।
जबकि तुमसे अभी तक कुछ बातें, मुलाकातें भी नहीं हुई है, मैंने तुम्हें अपने एक तरफ खड़ा कर दिया है। मैंने प्रेम ही नहीं किया है, शहर के इस मॉडर्न सिस्टम से दुश्मनी भी लिया है। शहर से शहर की ओर बढ़ते लोगों में एक मैं हूँ कि तुम्हें खुद के वापस में ले आना चाहता हूँ। आज गाँव की ओर निकल रहा हूँ। आखिरी शाम तुम्हें नहीं देख पाया था। इसका पछतावा रहेगा मुझे। इससे ज्यादा इसका कि तुम बालकॉनी में आकर, लौट गई होगी। मेरे लिये वो समय बहुत बुरा होता है, जब तुम्हें मेरे इंतज़ार में बेचैन देखता हूँ। यदि तुमने मुझे जाते देख लिया होगा तो शायद इंतज़ार तुम्हें न करना पड़े। अगले दस दिन मैं नहीं दिखूंगा तुम्हें, इसका भी डर रहेगा कि तुम मुझे बेवफा टाइप ना कह दो। लेकिन नहीं, गाँव में जाकर मैं तुम्हें चैन से अपने संग रख पाऊँगा। शहर की भागादौड़ी में ख़्वाब भी पूरी नहीं देखी जाती, तुम्हारे संग। गाँव में कभी दरवाजे पर बतियाते, मचान पर पैर झुलाते और खेतों की आरियों पर टहलते वक़्त मैं तुम्हें अपने साथ देखूँगा। एकांन्त में तुम्हें, गाँव जीने जा रहा हूँ।
very nice