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सुंदर मिथिला की कल्पना

  • Writer: Jashu Kumar
    Jashu Kumar
  • May 20, 2020
  • 2 min read

सुंदर मिथिला की कल्पना आप वहाँ से कर सकते हैं, जहाँ घर में ताले जंग लगने और लगे रह जाने के लिये नहीं लगेंगे। गाँव के क्रम से 25 घर ले लें तो 12 आदमी हैं। "जो दिन-सो दिन" की जिंदगी वाली दादी और माँ जो "बेटा आकर उन्हें भी ले जायेगा" सोच रही हैं या फिर वो भी जीवन काट ही लेंगी।

सड़क कच्ची से पक्की तन्दरुस्त हो गयी है। अब थाल इत्यादि नहीं लगते, बीच सड़क पर। बिजली जबरदस्त हो गयी है। गर्मी में भी अब जल्दी नहीं कटती और मैच के मेन टाइम में चले जाने की आदत भूल गयी है। मगर अब सड़क पर चलने वाले लोग और बिजली के उपयोगकर्ता नहीं है। ट्रेन खूब चल रहे हैं मग़र बहुत के जाने और कुछ के लौटने लिये। मैंने लौटते बहुत कम को ही देखा है।

शहर में रह रहे ऊपर की पीढ़ी में ज्यादातर गाँव को अब नहीं जानते, इग्नोर कर रहे हैं। वो अब उधर ही सेट हैं। उनके बच्चे मैथिली नहीं बोलते। हाँ, बोल तो सकते थे मगर उन्हें इससे दूर ही रखा गया है। कारण जानेंगे तो पता चलेगा कि "मैथिलि बोलने ही लग जायेगा तो इंग्लिश मीडियम और नगर में रहकर क्या फायदा" ये बात है। मग़र उन्हीं में कुछेक हैं, जिन्होंने हार नहीं मानी है। उनके भीतर गाँव जिंदा है, बच्चों के जुबाँ पर मैथिली आती है और गाँव लौटते रहने की ललक जाते समय दिख जाती है। और यदि इनके पेट और परिवार न हों तो गाँव के अलावे कहीं जाने की नहीं सोचेंगे। सुंदर गाँव की कल्पना तब कर सकते हैं, जिसमें इवेंट या किसी फंक्शन मात्र के लिये गाँव नहीं बना होगा। शहर से आये गाँव के ही लोग, गाँव में भोज करने भर तक सीमित नहीं रहेंगे। जहाँ गाँव में रहकर जिंदगी जीने की सपना पाले युवा, मिथिला-प्रवास के ट्रेन की बोगी में नहीं बैठेगा। गाँव का वो लड़का जिसने दसवीं तक सबको चराया है, वो साल भर बाद निठल्ला, गाँव का गंवार, घर का बोझ नहीं कहलायेगा। कारण बहुत सारे हैं और जिम्मेदार मिथिला, मिथिला की परिस्थिति है। गाँव में अब लाश को जलाने के लिये, आदमी नहीं जुटते। अपना बेटा देहांत के दो दिन बाद पहुँचता है, आग देने के लिये। और सबको खुश करने के लिये, आत्मा की शांन्ति के बहाने जवार करने के लिये। किसान, किसानी छोड़कर मजदूरी के लिये पंजाब, हरियाणा नहीं निकल रहे हैं। गाँव को सबकुछ मानने वाले मेरे टाइप ठीक-ठाक पढ़ाकू लड़क़ों को, दसवीं के बाद से ही शहर की चारदीवारी बन्द कर लेता है। बात रोजगार, शिक्षा, भाषा और व्यवस्था की करें। पलायन रोकने की करें। वैसे लोग लौटें, जिन्हें गाँव से प्रेम है। मिथिला ऐसा गाँव बने कि लोग शहर छोड़ इधर भागें। गाँवों की ओर लौटना ही, विकसित मिथिला का गवाह बनेगा। बात किसी गाँव से हो और एक गाँव के लिये हो।

 
 
 

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